Description
बैधनाथ सूतशेखर रस (स्वर्ण रहित)
आयुर्वेदिक औषधि : (आ•सा• संग्रह)
प्रत्येक टेबलेट (250 मि.ग्रा) में निम्न घटक द्रव्य है:
शुध्द पारद (पारा), शुध्द गंधक, शुध्द टंकण (सोहागे का फूला), शुध्द रौप्य भस्म, सोंठ, कालीमरिच, पीपल, धतूर बीज शुध्द, ताम्र भस्म, दालचीनी, तेजपत्र, नागकेशर, छोटी इलायची, शंख भस्म, बेलगिरी तथा कचूर प्रत्येक 11.54 मि.ग्रा, शेष- सहायक एवं भावना द्रव्य हैं।
गुण धर्म: अम्लपित्त और छाती की जलन की यह खास दवा है। उदर-शूल, कंठ की जलन, वमन, मूर्च्छा, चक्कर आना आदि पित्त प्रधान रोगों में इसका प्रयोग पूर्ण लाभकारी है। सब प्रकार के गुल्म, कठिन हिचकी रोग, दाह, खाँसी, मन्दाग्नि प्रभृति रोगों में भी इसका व्यवहार लाभप्रद है।
मात्रा और उपयोग विधि: पूरी उम्रवालों को 1 से 2 गोली तक, बच्चों को चौथाई मात्रा में। दिन में तीन-चार घन्टे के अन्तर से 1.5 ग्राम गाय का घी व 3 ग्राम मधु के साथ अथवा मीठा अनार,विदाना का रस या शर्बत के साथ। वमन, हिचकी,दाह में लाजमण्ड (धान का लावाखील) 15 ग्राम, छोटी इलायची 2-4 नग, मिश्री 3 ग्राम तक 250 मिली. पानी में डालकर चौथाई शेष बचने तक अग्नि पर पका कपड़े से छानकर ठंड़ा होने पर उसमें से 1-2 चम्मचके साथ देने से यह अच्छा लाभ करता है।
पथ्य: गेहूं या जौ की रोटी, पुराना चावल, सत्तू, मूंग की दाल या यूष, परवल, लौकी, करेला, तरोई,नेनुआ, चौलाई, बथुवे का साग, विंदाना, अनार, सेब, पेठा, नारियल, केला,मीठा पका आम, धनियां, जीरा, हल्दी, सेन्धा नमक,थोड़ी कच्ची आदी, मधु, मिश्री, दूध, ताजा मक्खन, घी, आंवला की चटनी।
अपथ्य: अम्ल, कडुआ और कभी तिक्त रस प्रधान द्रव्य। तिल, उड़द, दही, मदिरा, तेल या घी में तली पूड़ी-पकौड़ी आदि सर्वथा वर्जित है।
नोट: यह दवा वर्ती रूप में बनाने का प्रचार है, अत: घोटकर मात्रा अवस्थानुसार बना लेनी चाहिए।
सावधानी : वैधकीय निरीक्षण के अंतर्गत लिया जाय।
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