Description
Sarvang Sundar Ras (Vrihat) (Swarna Yukt)
बैद्यनाथ सर्वांग सुन्दर रस
आयुर्वेद औषधि (मि०सा०सं० यक्षमाचिकित्सा।)
प्रत्येक टेबलेट (125 मि०ग्रा०) में निम्न घटक द्रव्य है :
स्वर्ण भस्म एवं तीक्ष्ण लौह भस्म प्रत्येक 6.87 मि०ग्रा०, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, मोती भस्म (पिष्टी), प्रवाल भस्म एवं शंख भस्म प्रत्येक 13.74 मि०ग्रा०, शुद्ध टंकण 27.47 मि०ग्रा० तथा शुद्ध हिंगुल 3.43 मिग्रा०, शेष – सहायक द्रव्य है।
गुण धर्म : यह रस पुराने खाँसी-बुखार के लिये महोपकारी है। इसके अतिरिक्त वात-पित्त-ज्वर, भयंकर सन्निपात, अर्श,भगन्दर, गुल्म आदि में भी इसका प्रयोग गुणकारी है।
वात-कफ-जन्य विकारों में इसका प्रयोग विशेष गुणदायक है।
मात्रा और अनुपान : पूरी उम्रवालों को 125 मिग्रा०
250 मिग्रा० तक दिन में दो बार। पुराने खाँसी-बुखार में पीपल चूर्ण या चौंसठ प्रहरी पीपल 250 मिग्रा० और मधु 3 ग्राम
अथवा पीपल चूर्ण और घी 3 ग्राम के साथ। वात-सम्बन्धी रोग में पान के साथ। कफ-विकारों में आदी रस के साथ तथा पित्तज
विकारों में मिश्री-घी या मक्खन के साथ देना उत्तम है।
सितोपलादि चूर्ण 1 ग्राम, गिलोय सत्व 2 ग्राम के साथ मिलाकर मधु से चटाना और ऊपर से द्राक्षारिष्ट पिलाना खाँसी-बुखार
विशेष लाभदायक है। यदि दुर्बलता विशेष हो, तो च्यवनप्राश के साथ देना और महालाक्षादि या महाचन्दनादि तैल की मालिश करन उत्तम है।
पथ्य : हल्का सुपाच्य भोजन, पुराने गेहूँ, जौ, पुराना चावल, मूंग का यूष, बकरी या गाय का दूध, मक्खन, घी, मांसाहारियों के लिये जंगली जीवों का घृतसिद्ध मांस रस, अण्डा, विशेषकर बकरे का मांस और बकरियों के झुण्ड में रहना, अंगूर, अनार, बिदाना,सन्तरा, सेब, अनन्नास, मुनक्का, परवल, सहिजन की फली,
आंवला, मीठा आम आदि चिकित्सक के परामर्श से रोगी की प्रकृति और लक्षण अनुसार देना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण करना, स्वच्छ
जलवायु का सेवन, पवित्र स्वास्थ्यपद पर्वतीय स्थान में रहना, ब्रह्मचर्य का पालन आदि लाभदायक है।
अपथ्य : व्यायाम, मल-मूत्र के वेग को रोकना, रात में जागना, सूखे अन्न, शक्ति से ज्यादा परिश्रम, कुल्थी-उड़द की बनी वस्तुएँ, हींग, खट्टे पदार्थ, क्षार पदार्थ, पत्तों का शाक, सेम, बैंगन,करेला, तेल, बेल, फल, राई, दिन में सोना, क्रोध, मैथुन आदि रोगियों के लिए अपथ्य हैं।
नोट : रोग की विशेषावस्था में चिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक है।
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