Description
बैध नाथ कपर्दक भस्म
आयु.औ.(र.सा.सं.)
बैधनाथ कपर्दक भस्म
आयुर्वेदिक औषधि (र.सा.सं.)
गुण धर्म : यह भस्म परिणामशूल, पेट के दर्द, अम्लपित, और अग्नि-मान्ध में अति लाभकारी है। आफरा, गुल्म, शूल, संग्रहणी आदि में इसका प्रयोग सुन्दर कार्य करता है। कर्णारत्राव में इसका प्रयोग गुणकारी है। यह पित्तशामक है, अत: विशेषकर पित्त की अम्लता को दूर करती है। उदरशूल, भोजन का परिपाक अच्छी तरह न होने से बार-बार सूखी या खट्टी डकारें आना, अजीर्ण आदि से यह भस्म महापयोगी है।
मात्रा और अनुपान : 250 मिग्रा. से 500 मिग्रा. तक, पथावश्यक घृत 3 ग्राम और मधु 6 ग्राम के साथ मिलाकर देना चाहिए।
अनुपान विशेष : परिणामशूल में यदि वमन और आफरा हो तो कपर्दक भस्म को दाड़िम स्वरस या दाड़िमावलेह के साथ देना उत्तर है। अजीर्ण, पेट दर्द, शूल, आफरा आदि में शंख भस्म 250 मिग्रा. से 500 मिग्रा. हिंग्वष्क चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर अजवायन अर्क या गर्म जल के साथ कपर्दक भस्म देने से शीघ्र लाभ होता है। संग्रहणी की प्रारम्भिक अवस्था में अफीमयुक्त स्तम्भक एवाएँ न देकर केवल भुने हुए जीरे के चूर्ण के साथ कपर्दक भस्म का प्रयोग करना अत्युत्तम है। अम्लपित्त में बार-बार खट्टी डकारें और वमन आने की दशा में स्वर्णमाक्षिक भस्म अथवा सूतशेखर रस 125 मिग्रा. से 250 मिग्रा. मिलाकर मीठे विदाका के रस या गाय का घी 3 ग्राम, मधु 1 ग्राम के साथ देना उत्तम है। पेट-दर्द, मदाग्नि में त्रिकुट (सोंठ मिर्च, पीपल) के साथ या राजवटी 1 गोली, शंख भस्म 250 मिग्रा. लवण भास्कर 1 ग्राम के साथ मिलाकर गर्म जल के साथ भोजन के बाद लेना उत्तम है। कान बहने में कपर्दक भस्म के साथ समुद्रफेन मिलाकर कान में डालकर ऊपर से नीबू-रस डालना चाहिए तथा और मधु के साथ पपर्दक भस्म चटाकर ऊपर से दूध पिलाना विशेष गुणदायक होता है। कपर्दक भस्म के साथ रस सिन्दूर 125 मिग्रा. मिलाकर गूलर-पत्र के रस के साथ देने से रक्तपित्त रोग में अच्छा लाभ होता है।
विशेष : कपर्दक भस्म में क्षार की अधिकता रहती है, अत: इसे अकेला सेवन करना हो तो मधु, मक्खन आदि स्त्रिग्ध चीजों के साथ लेना चाहिए, अन्यथा जीभ फटने की आशका रहती है।
प्रत्येक 5 ग्राम में निम्न घटक द्रव्य है:
कौड़ी 5.0 ग्राम।
सावधानी : वैधकीय निरीक्षण के अंतर्गत लिया जाय।
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