Angur ( Grapes ) se kayakalp karne vaali vidhiyan
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अंगूर से कायाकल्प करने वाली विधियाँ।
लम्बी आयु प्राप्त करने, बुढ़ापे को जवानी में बदलने और विभिन्न रोगों से बचने के लिये अंगूरों ( grapes ) का प्रयोग प्राचीनकाल से किया जाता रहा है। ताकतवर बने रहने के लिए अंगूर, मुनक्का और किशमिश में विशेष गुण हैं। विदेशों के कई प्राकृतिक चिकित्सक तो बड़े-बड़े भयानक रोग केवल अंगूर ( grapes )खिलाकर ही दूर कर लेते है।
अंगूर शरीर में जठराग्नि को बढ़ाने, शुध्द ताजा और लाल रक्त बढ़ाने, दिमाग, दिल को ताकत देने, स्नायु संस्थान को शक्तिशाली बनाये रखने के लिये इसमें विशेष गुण है। बुढ़ापे में मनुष्य की रक्तवाहिनियाँ कठोर हो जाती है, उनमें लचक नहीं रहती जिसके कारण रक्त शरीर के हर सैल में नहीं पहुँच सकता, जिससे मनुष्य कमजोर और बूढ़ा होता चला जाता है। रक्त संचार भली-भाँती न होने के कारण ही शरीर पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं। पका हुआ अंगूर गर्म तर है। यह शीघ्र पच जाता है और इसका अधिकतर अंश रक्त में बदल जाता है। इसे निरन्तर प्रयोग से दुबले-पतले और कमजोर मनुष्य मोटे ताजे बन जाते हैं। पीला चेहरा लाल हो जाता है। अंगूर शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाते हैं। जिसके कारण वृष्णों का हार्मोन रक्त में पूरी मात्रा में मिलकर मनुष्य को ताकतवर बनाये रखता है। अंगूर माँसपेशियों के तनाव, ऐंठन को दूर करता और स्नायुओं को बुढ़ापे में भी शक्तिशाली और मुलायम बनाये रखता है। जिसके कारण बुढ़ापे में लकवा, कमरदर्द, कम्पन आदि रोग नहीं हो पाते। रक्तवाहिनीयों को लचकीला बनाने के कारण दिल को कम काम करना पड़ता है।जिसके कारण वह बड़ी आयु में भी ताकतवर बना रहता और उसके फेल होने का डर नहीं रहता। फेफड़ों पर इसका विशोष प्रभाव पड़का है इसलिये इसके प्रयोग से न्यूमोनिया, खाँसी, दमा और श्नासाँगों सम्बन्धी दूसरे रोग बिलकुल नहीं हो पाते। कैंसर जैस भयानक रोग अंगूरों और मुनक्का के प्रयोग से ठीक हो जाता है। विदेशों में प्राकृतिक चिकित्सक आयु बढ़ाने, कायाकल्प करने, रोगों से छुटकारा, पाने, जवान बने रहने के लिये कमजोर मनुष्यों और रोगियों को ऐसे प्रदेश में भेज देते हैं जहाँ बाग बहुत अधिक होते हैं। रोगी को हर मिनट के बाद एक दाना पका मीठा अंगूर भली प्रकार चूसकर खाने को दिया जाता है और धीरे-धीरे अंगूरों की मात्रा बढ़ाई जाती है। यहाँ तक कि रोगी दिन भर में आधा सेर से 4 सेर अंंगूर पतिदिन खाने और उनको पचाने के योग्य हो जाता है। अंगूर सात्विक भोजन खाने से 3/4 घंटे पहले खिलायें जाते हैं। यह चिकित्सा 30 से 90 दिन तक जारी रखी जाती है। अंगूर से आप निम्न रोग दूर करके कमजोर और बूढ़े रोगियों को पुन: जवान और ताकतवर बना सकते हैं। क्षय रोग, कैंसर, पुरानी कब्ज, संग्रहणी से पैदा पुराना अतिसार और पाचनाँगों की कमजोरी, भूख न लगना, वायु की अधिकता, पेट फूल जाना, दिल की कमजोरी, दिल अधिक धड़कना और दिल के दूसरे रोग, आमाशय और अन्तड़ियों की पुरानी शोथ, दमा, साँस कठिनाई से आना, कण्ठमाला, प्लीहा शोथ और तिल्ली का बढ. जाना, मूत्राशय शोथ (इस रोग में केवल पके मीठे अंगूर ही खिलायें), पमरानी कब्ज और उससे पैदा पाचनदोष,छोटे जोड़ों का दर्द,अधिक भोजन खाने और काम न करने से पैदा मोटापा, दृष्टि की कमजोरी,मानसिक और शारीरिक कमजोरियाँ।
अंगूर चिकित्सा से कायाकल्प करने और रोगों की चिकित्सा करने के लिये मनुष्य को खेतों की खुली वायु में रखा जाता है। अंगूरों से लाभ उठाने और इनसे चिकित्सा करने पर कुछ और महत्वपूर्ण बातें नीचे लिखी है।
कायाकल्प या चिकित्सा के लिये मनुष्य प्रात: 8 बजे 2-3 औंस मीठे पके अंगूर चूस ले और बीज फेंक दे परनतु उसके रेशे खा ले। हाँ, जिन रोगियों के पाचनांगों में दोष है वे केवल अंगूरों का रस ही चूस लें और इस रेशे को फेंक दें। हर 2 घण्टे बाद इसी प्रकार इतनी मात्रा में रात को 8 बजे तक बार-बार पके मीठे अंगूर खाते रहें। धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते जायें यहाँ तक कि एक बार 8 औंस अंगूर पचने और शरीराँश होने लग जायें। रोग की कमी या अधिकता, आयु को देखते हुए अंगूरों से चिकित्सा 7-15-21 या 30 दिन तक जारी रखी जाती है। इस समय रोगी को कोई दूसरा भोजन खाने को नहीं दिया जाता। भारत में सर्दी में 30 दिन से अधिक यह चिकित्सा न की जाये। बहुत अधिक अंगूर खा लेने से भी हानि होती है। हमेशा भूख के कम खायें। इससे शरीर के हर सैल और रक्त से तमाम विषैले तत्व (Toxins) निकल जाते हैं। वजन भी कम शुरू में अपने अन्दर नई चुस्ची, और ताकत प्रतीत करने लग जाता है। मनुष्य में कई प्रकार के खनिज लवणों (Mineral Salts) की कमी हो जाने से कई-कई रोग हो जाते है और मनुष्य समय से पूर्व कमजोर और बूढ़ा होने लग जाता है। अंगूरों के रस से शरीर में उस तत्वों की कमी दूर होकर मनुष्य दोबारा स्वस्थ और जवान बन जाता है। अंगूरों का कोर्स पूरा कर लेने के बाद रोगी को दूसरे ताजा फल, टमाटर,दही की गाढ़ी लस्सी (बहुत कम पानी मिलाकर) पीने को दी जाती है परन्तु एक समय में एक ही फल कम मात्रा में थोड़े-थोड़े समय बाद खिलाया जाये ताकि वह आसानी से पचकर शरीरांश बन जाये। तीसरी स्टेज में रोगी को कच्ची सब्जियाँ, सलाद,मेवे, मुनक्का, अंजीर, पनीर, क्रिम, दही, मट्ठा, मधु, जैतून का तेल खाने को दिया जाता है और बाद में धीरे-धीरे अनाज से बनी बस्तुयें और रोटी खाने को दी जाती हैं। सर्दियों में मुनक्के को पानी से धोकर तवे पर थोड़ा घी डालें। जब घी बहुत गर्म हो जाये तो 10 से 20 दाने मुनक्का डालकर हिलायें और तवे को आग से उतारकर नीचे रख लें। मुनक्का फूल जायेगा। परन्तु ध्यान रखें कि जलने न पाये। अब खाली आमाशय में गर्म-गर्म मुनक्का खा लें। दिन में 2 से 4 बार मुनक्का पाचन शक्ति के अनुसार खाते रहें। वजन बढ़ाने, जठराग्नि पैदा करने, नजला पाचन शक्ति के अनुसार खाते रहें। वजन बढ़ाने, जठराग्नि पैदा करने, नजला-जुकाम, भूख न लगना, सर्दी, अधिक लगन, कब्ज, मर्दाना कमजोरी, दिल और दिमाग की कमजोरी, वजन कम होना, रक्तालपता में बहुत लाभ होता है। अंगूरों और मुनक्का की चिकित्सा और प्रयोग से मनुष्यों और रोगियों की मानसिक और शारीरिक शक्ति, वजन, तथा रक्त बढ़ जाता है। दृष्टि तेज हो जाती है। बाल लम्बे और चमकदार हो जाते हैं। शरीर पर विशेष प्रकार की चमक (तेज) आ जाती है। चेहरा सुन्दर हो जाता,पुराने रोग दूर हो जाते हैं। मनुष्य नई शक्ति और जवानी प्रतीत करने लग जीता है।
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